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अमजद खान का रहस्यमयी अवार्ड: ‘शोले’ के गब्बर से लेकर बेस्ट कॉमेडियन तक का सफर!
अमजद खान: हिंदी सिनेमा का आइकॉनिक विलेन और कॉमेडी का मास्टर
अमजद खान, जिन्होंने हिंदी सिनेमा में गब्बर सिंह के रूप में अमर छाप छोड़ी, उनकी एक्टिंग और डायलॉग्स आज भी फैंस के दिलों में जीवित हैं। ‘कितने आदमी थे?’, ‘तेरा क्या होगा कालिया?’, और ‘जो डर गया वो समझो मर गया’ जैसे डायलॉग्स ने उन्हें एक कालजयी विलेन बना दिया।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि अमजद खान ने अपनी विलेन की छवि के अलावा एक और अनदेखे रूप में भी सफलता हासिल की? जी हां, आपको जानकर हैरानी होगी कि अमजद खान को एक फिल्म के लिए बेस्ट कॉमेडियन का अवार्ड मिला था।
1985 की ‘मां कसम’: अमजद खान की कॉमिक टाइमिंग का जादू
अमजद खान की फिल्म ‘मां कसम’ (1985) ने उनकी एक नई पहचान बनायी। इस फिल्म के लिए उन्हें बेस्ट कॉमेडियन का फिल्मफेयर अवार्ड भी मिला। इस फिल्म में उनके अभिनय ने दर्शकों को हंसने पर मजबूर कर दिया।
इसके अलावा, उनकी कॉमिक टाइमिंग की एक और शानदार मिसाल ‘चमेली की शादी’ में देखने को मिली, जहां उन्होंने एक वकील की भूमिका निभाई थी। उनकी इस अदाकारी ने भी दर्शकों के दिलों में एक खास जगह बनाई।
पिता की विरासत: अमजद खान का एक्टिंग का सफर
अमजद खान को एक्टिंग की कला विरासत में मिली। उनके पिता, जयंत, एक प्रसिद्ध अभिनेता थे, जिन्होंने बंटवारे के बाद पेशावर से मुंबई आकर अपने करियर की शुरुआत की। अमजद ने अपने पिता के साथ ही 11 साल की उम्र में अपनी पहली फिल्म ‘नाजनीन’ (1951) की। इसके बाद, उन्होंने कई फिल्मों में छोटे-मोटे रोल निभाए, लेकिन उन्हें पहचान मिली साल 1975 में रमेश सिप्पी की फिल्म ‘शोले’ से।
‘शोले’: गब्बर सिंह की छवि से हिंदी सिनेमा में अमर हो गए अमजद खान
‘शोले‘ ने हिंदी सिनेमा को एक नई दिशा दी। अमजद खान के गब्बर सिंह ने एक ऐसे विलेन का परिचय दिया, जो पहले कभी नहीं देखा गया था। इस फिल्म ने न केवल उन्हें एक दिग्गज अभिनेता बनाया, बल्कि उनकी एक्टिंग की छवि को भी एक नई पहचान दी।
इसके बाद अमजद खान ने ‘शतरंज के खिलाड़ी’ (1977), ‘हम किसी से कम नहीं’ (1977), ‘गंगा की सौगंध’ (1978), ‘देस परदेस’ (1978), ‘दादा’ (1979), ‘चंबल की कसम’ (1980), ‘नसीब’ (1981), ‘सत्ते पे सत्ता’ (1982), ‘याराना’ (1981), और ‘लावारिस’ (1981) जैसी फिल्मों में महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाईं।
अमजद खान का शैक्षणिक जीवन और थियेटर की ओर शुरुआत
अमजद खान का जन्म भारत में हुआ और उनकी प्रारंभिक शिक्षा सेंट एंड्रयूज हाई स्कूल, बांद्रा से हुई। इसके बाद उन्होंने आरडी नेशनल कॉलेज से पढ़ाई की। युवा अवस्था में ही उन्होंने थियेटर की ओर रुख किया और अपने पिता के साथ एक्टिंग की शुरुआत की।
अमजद ने अपनी फिल्मों के माध्यम से दर्शकों को हंसाया और डराया, और एक अभिनेता के रूप में अपनी छाप छोड़ी।
अमजद खान की मौत और उनकी विरासत
अमजद खान ने 27 जुलाई 1992 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया। उनके निधन से हिंदी सिनेमा का एक चमकदार सितारा आकाश से चला गया। लेकिन उनकी एक्टिंग और डायलॉग्स आज भी लोगों के दिलों में जीवित हैं। अमजद खान की विरासत हिंदी सिनेमा के इतिहास में अमिट छाप छोड़ गई है और उनकी फिल्में हमेशा याद की जाएंगी।
अमजद खान की यह यात्रा हमें बताती है कि एक अभिनेता की छवि सिर्फ उसके सबसे प्रसिद्ध किरदार तक सीमित नहीं होती। उनकी कॉमिक टाइमिंग और विलेन के रूप में उनकी क्षमता ने उन्हें एक ऐसा अभिनेता बना दिया, जिसकी यादें सदा ताजगी से भरी रहेंगी।
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