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अखिलेश यादव का बड़ा फैसला: विधानसभा से इस्तीफा, लोकसभा में बढ़ाया कद
बीजेपी को मिला बड़ा झटका
इस लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश ने बीजेपी को बहुमत हासिल करने से रोक दिया। बीजेपी उत्तर प्रदेश में 29 सीटें और उसकी सहयोगी अपना दल (एस) एक सीट हार गई। इससे बीजेपी के विजय रथ को समाजवादी पार्टी ने मजबूती से रोक दिया।
अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी ने प्रदेश की 37 सीटों पर जीत दर्ज की है। इसके साथ ही सपा संसद में बीजेपी और कांग्रेस के बाद सबसे बड़ी पार्टी बन गई है। अखिलेश यादव कन्नौज से सांसद चुने गए हैं। इसके बाद उन्होंने मैनपुरी जिले की करहल विधानसभा सीट से इस्तीफा दे दिया है।
अखिलेश यादव की बढ़ती लोकप्रियता
लोकसभा चुनाव में मिली शानदार जीत के बाद अखिलेश यादव का कद राष्ट्रीय राजनीति में काफी बढ़ गया है। इसे देखते हुए ही उन्होंने यूपी की विधानसभा की जगह देश की संसद में बैठने का फैसला किया है। सपा के नेताओं-कार्यकर्ताओं की राय है कि पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी बनाने की दिशा में काम करना चाहिए। इसलिए अखिलेश यादव ने करहल विधानसभा सीट से इस्तीफा दिया है।
बीजेपी को हराने की रणनीति
यह अखिलेश यादव और उनकी पार्टी की आक्रामक रणनीति का ही परिणाम था कि 2019 में 62 सीटें जीतने वाली बीजेपी 33 सीटों पर सिमट गई। इसी उत्तर प्रदेश में बीजेपी और उसके सहयोगियों ने 2014 के चुनाव में 73 सीटों पर कब्जा जमाया था। वह चुनाव सपा ने अकेले के दम पर लड़ा था। उसे पांच सीटें मिली थीं। लेकिन बीजेपी को हराने के लिए अखिलेश यादव ने 2019 के चुनाव में मायावती से हाथ मिलाया।
दोनों दल दो दशक से अधिक समय बाद एक साथ आए थे। हालांकि यह समझौता सपा के काम नहीं आया। परिणाम आया तो सपा को केवल पांच सीटें मिलीं, वहीं बसपा 10 सीटें जीतने में कामयाब रही, जिसे 2014 में एक भी सीट नहीं मिली थी।
साल 2024 के चुनाव में बीजेपी को हराने के लिए सपा ने एक बार फिर समझौता का रास्ता चुना। इस बार उसने दोस्त बनाया कांग्रेस को, जो अपना अस्तित्व बचाने की लड़ाई सड़क से लेकर संसद तक लड़ रही थी। सपा-कांग्रेस ने समझदारी के साथ आक्रामक प्रचार किया। नतीजा भी उनके पक्ष में रहा।
दोनों दल 43 सीटें जीतने में कामयाब रहे। सपा की इस जीत ने बीजेपी को लोकसभा में अकेले के दम पर बहुमत हासिल करने से रोक दिया। सपा ने इससे पहले 2004 में 35 सीटें जीती थीं। उस समय मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे।
पिता की राह पर बेटा
इस जीत के बाद सपा प्रमुख अखिलेश यादव राष्ट्रीय राजनीति में वही भूमिका निभाना चाहते हैं, जो उनके पिता और दिग्गज समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव निभाते थे। पिता के पदचिन्हों पर चलते हुए ही अखिलेश यादव ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है।
सपा के देश की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनने के बाद अखिलेश का राष्ट्रीय राजनीति में रुतबा भी बढ़ा है। साल 1996 का लोकसभा चुनाव जीतने के बाद मुलायम सिंह यादव 1996 में सहसवान विधानसभा की सीट से इस्तीफा देकर दिल्ली की राजनीति में सक्रिय हुए थे और छा गए थे।
अखिलेश यादव का पीडीए (PDA) फार्मूला
इस लोकसभा चुनाव से पहले अखिलेश यादव ने पीडीए (PDA) – पिछड़ा, अल्पसंख्यक और दलित का फार्मूला ईजाद किया। इसके दम पर अखिलेश ने बीजेपी के पिछड़ा वोटबैंक में सेंध लगाई। उत्तर प्रदेश में गैर यादव ओबीसी को टिकट देकर बीजेपी ने अपना विजयपथ तैयार किया था।
उसे मात देने के लिए अखिलेश ने इस चुनाव में केवल पांच यादवों और चार मुसलमानों को टिकट दिया। इसका परिणाम भी सपा के पक्ष में गया। सपा ने कुर्मी बहुल अधिकांश सीटों पर जीत हासिल कर ली।
राष्ट्रीय राजनीति में सपा का विस्तार
सपा के राष्ट्रीय राजनीति में छाने के सपने को पीडीए (PDA) फार्मूला पूरा कर सकता है। उसे इस फार्मूले पर राजस्थान, बिहार, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में सफलता मिल सकती है। लेकिन इसके लिए उसे कांग्रेस और राजद जैसे दलों से दोस्ती को लंबे समय तक कायम रखना होगा, क्योंकि इन राज्यों में ये दोनों पार्टियां विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टियां हैं। लालू प्रसाद यादव से रिश्ते की वजह से सपा को बिहार में बहुत मुश्किल नहीं आएगी।
अखिलेश यादव के पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से भी प्रगाढ़ रिश्ते हैं। इसे इस तरह समझ सकते हैं कि इस लोकसभा चुनाव में सपा ने अपने कोटे की एक सीट ममता की तृणमूल कांग्रेस को दी थी। हालांकि तृणमूल को सफलता तो नहीं मिली, लेकिन उसे दूसरा स्थान जरूर मिल गया।
अखिलेश अगर चाहें तो वे पश्चिम बंगाल में भी पैर पसार सकते हैं, जो सपा के राष्ट्रीय पार्टी बनने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम होगा। सपा के लिए महाराष्ट्र में भी अच्छा आधार है। वहां से उसके विधायक भी जीते हैं।
अखिलेश यादव की आकांक्षा
लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद पांच जून को अखिलेश यादव ने एक्स (X) पर लिखा था, ”जनाकांक्षा का प्रतीक ‘इंडिया गठबंधन’ जनसेवा के अपने संकल्प पर अडिग रहेगा, एकजुट रहेगा और संविधान, लोकतंत्र, आरक्षण, मान-सम्मान-स्वाभिमान बचाने तथा बेरोजगारी, महंगाई, भ्रष्टाचार के कष्ट और संकट से जनता को मुक्त करने के अपने प्रयासों को निरंतर रखेगा।”
उन्होंने लिखा था, ”इंडिया गठबंधन PDA का राष्ट्र-व्यापी विस्तार करने और PDA के लिए लगातार संघर्ष करते रहने के लिए वचनबद्ध है। इंडिया गठबंधन किसान, मजदूर, युवा, महिला, कारोबारी-व्यापारी, नौकरीपेशा और सरकारी कर्मचारियों व अधिकारियों के मुद्दों को आधार बनाकर, उनकी आवाज बनने का काम करता रहेगा।
देश की समझदार जनता का धन्यवाद, शुक्रिया और आभार।” जाहिर है अखिलेश राष्ट्रीय राजनीति में जाकर अपनी छवि ऐसी बनाना चाहते हैं जो पीएम नरेंद्र मोदी और सीएम योगी आदित्यनाथ का मुकाबला मिल सके। अगर वे ऐसा कर पाते हैं तो निश्चित तौर पर उन्हें और उनकी पार्टी को फायदा होगा।
भविष्य की योजनाएं
पार्टी के एक सूत्र के मुताबिक सपा जल्द ही दूसरे राज्यों में नए प्रभारियों की नियुक्ति करेगी। उन राज्यों में आधार बढ़ाने के लिए पार्टी कार्यक्रमों का भी आयोजन करेगी। इसके साथ ही समाजवादी पार्टी ने 2027 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है।
लोकसभा चुनाव के नतीजों से जो जोश पैदा हुआ है, पार्टी अपने कार्यकर्ताओं और नेताओं में बनाए रखना चाहती है, जिससे पिछले दो चुनाव में मिली हार से उबरकर एक बार फिर प्रदेश में सपा की सरकार बन सके।
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